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Surah Al-Baqara Ayahs #264 Translated in Hindi

وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ رَبِّ أَرِنِي كَيْفَ تُحْيِي الْمَوْتَىٰ ۖ قَالَ أَوَلَمْ تُؤْمِنْ ۖ قَالَ بَلَىٰ وَلَٰكِنْ لِيَطْمَئِنَّ قَلْبِي ۖ قَالَ فَخُذْ أَرْبَعَةً مِنَ الطَّيْرِ فَصُرْهُنَّ إِلَيْكَ ثُمَّ اجْعَلْ عَلَىٰ كُلِّ جَبَلٍ مِنْهُنَّ جُزْءًا ثُمَّ ادْعُهُنَّ يَأْتِينَكَ سَعْيًا ۚ وَاعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
और (ऐ रसूल) वह वाकेया भी याद करो जब इबराहीम ने (खुदा से) दरख्वास्त की कि ऐ मेरे परवरदिगार तू मुझे भी तो दिखा दे कि तू मुर्दों को क्योंकर ज़िन्दा करता है ख़ुदा ने फ़रमाया क्या तुम्हें (इसका) यक़ीन नहीं इबराहीम ने अर्ज़ की (क्यों नहीं) यक़ीन तो है मगर ऑंख से देखना इसलिए चाहता हूं कि मेरे दिल को पूरा इत्मिनान हो जाए फ़रमाया (अगर ये चाहते हो) तो चार परिन्दे लो और उनको अपने पास मॅगवा लो और टुकड़े टुकड़े कर डालो फिर हर पहाड़ पर उनका एक एक टुकड़ा रख दो उसके बाद उनको बुलाओ (फिर देखो तो क्यों कर वह सब के सब तुम्हारे पास दौड़े हुए आते हैं और समझ रखो कि ख़ुदा बेशक ग़ालिब और हिकमत वाला है
مَثَلُ الَّذِينَ يُنْفِقُونَ أَمْوَالَهُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ كَمَثَلِ حَبَّةٍ أَنْبَتَتْ سَبْعَ سَنَابِلَ فِي كُلِّ سُنْبُلَةٍ مِائَةُ حَبَّةٍ ۗ وَاللَّهُ يُضَاعِفُ لِمَنْ يَشَاءُ ۗ وَاللَّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ
जो लोग अपने माल खुदा की राह में खर्च करते हैं उनके (खर्च) की मिसाल उस दाने की सी मिसाल है जिसकी सात बालियॉ निकलें (और) हर बाली में सौ (सौ) दाने हों और ख़ुदा जिसके लिये चाहता है दूना कर देता है और खुदा बड़ी गुन्जाइश वाला (हर चीज़ से) वाक़िफ़ है
الَّذِينَ يُنْفِقُونَ أَمْوَالَهُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ ثُمَّ لَا يُتْبِعُونَ مَا أَنْفَقُوا مَنًّا وَلَا أَذًى ۙ لَهُمْ أَجْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ
जो लोग अपने माल ख़ुदा की राह में ख़र्च करते हैं और फिर ख़र्च करने के बाद किसी तरह का एहसान नहीं जताते हैं और न जिनपर एहसान किया है उनको सताते हैं उनका अज्र (व सवाब) उनके परवरदिगार के पास है और न आख़ेरत में उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह ग़मगीन होंगे
قَوْلٌ مَعْرُوفٌ وَمَغْفِرَةٌ خَيْرٌ مِنْ صَدَقَةٍ يَتْبَعُهَا أَذًى ۗ وَاللَّهُ غَنِيٌّ حَلِيمٌ
(सायल को) नरमी से जवाब दे देना और (उसके इसरार पर न झिड़कना बल्कि) उससे दरगुज़र करना उस खैरात से कहीं बेहतर है जिसके बाद (सायल को) ईज़ा पहुंचे और ख़ुदा हर शै से बेपरवा (और) बुर्दबार है
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تُبْطِلُوا صَدَقَاتِكُمْ بِالْمَنِّ وَالْأَذَىٰ كَالَّذِي يُنْفِقُ مَالَهُ رِئَاءَ النَّاسِ وَلَا يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ۖ فَمَثَلُهُ كَمَثَلِ صَفْوَانٍ عَلَيْهِ تُرَابٌ فَأَصَابَهُ وَابِلٌ فَتَرَكَهُ صَلْدًا ۖ لَا يَقْدِرُونَ عَلَىٰ شَيْءٍ مِمَّا كَسَبُوا ۗ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ
ऐ ईमानदारों आपनी खैरात को एहसान जताने और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) देने की वजह से उस शख्स की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोगों को दिखाने के वास्ते ख़र्च करता है और ख़ुदा और रोजे आखेरत पर ईमान नहीं रखता तो उसकी खैरात की मिसाल उस चिकनी चट्टान की सी है जिसपर कुछ ख़ाक (पड़ी हुई) हो फिर उसपर ज़ोर शोर का (बड़े बड़े क़तरों से) मेंह बरसे और उसको (मिट्टी को बहाके) चिकना चुपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) रियाकार अपनी उस ख़ैरात या उसके सवाब में से जो उन्होंने की है किसी चीज़ पर क़ब्ज़ा न पाएंगे (न दुनिया में न आख़ेरत में) और ख़ुदा काफ़िरों को हिदायत करके मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता

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