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Surah Fussilat Ayahs #45 Translated in Hindi

إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِالذِّكْرِ لَمَّا جَاءَهُمْ ۖ وَإِنَّهُ لَكِتَابٌ عَزِيزٌ
जिन लोगों ने नसीहत को जब वह उनके पास आयी न माना (वह अपना नतीजा देख लेंगे) और ये क़ुरान तो यक़ीनी एक आली मरतबा किताब है
لَا يَأْتِيهِ الْبَاطِلُ مِنْ بَيْنِ يَدَيْهِ وَلَا مِنْ خَلْفِهِ ۖ تَنْزِيلٌ مِنْ حَكِيمٍ حَمِيدٍ
कि झूठ न तो उसके आगे फटक सकता है और न उसके पीछे से और खूबियों वाले दाना (ख़ुदा) की बारगाह से नाज़िल हुई है
مَا يُقَالُ لَكَ إِلَّا مَا قَدْ قِيلَ لِلرُّسُلِ مِنْ قَبْلِكَ ۚ إِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغْفِرَةٍ وَذُو عِقَابٍ أَلِيمٍ
(ऐ रसूल) तुमसे से भी बस वही बातें कहीं जाती हैं जो तुमसे और रसूलों से कही जा चुकी हैं बेशक तुम्हारा परवरदिगार बख्शने वाला भी है और दर्दनाक अज़ाब वाला भी है
وَلَوْ جَعَلْنَاهُ قُرْآنًا أَعْجَمِيًّا لَقَالُوا لَوْلَا فُصِّلَتْ آيَاتُهُ ۖ أَأَعْجَمِيٌّ وَعَرَبِيٌّ ۗ قُلْ هُوَ لِلَّذِينَ آمَنُوا هُدًى وَشِفَاءٌ ۖ وَالَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ فِي آذَانِهِمْ وَقْرٌ وَهُوَ عَلَيْهِمْ عَمًى ۚ أُولَٰئِكَ يُنَادَوْنَ مِنْ مَكَانٍ بَعِيدٍ
और अगर हम इस क़ुरान को अरबी ज़बान के सिवा दूसरी ज़बान में नाज़िल करते तो ये लोग ज़रूर कह न बैठते कि इसकी आयतें (हमारी) ज़बान में क्यों तफ़सीलदार बयान नहीं की गयी क्या (खूब क़ुरान तो) अजमी और (मुख़ातिब) अरबी (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ईमानदारों के लिए तो ये (कुरान अज़सरतापा) हिदायत और (हर मर्ज़ की) शिफ़ा है और जो लोग ईमान नहीं रखते उनके कानों (के हक़) में गिरानी (बहरापन) है और वह (कुरान) उनके हक़ में नाबीनाई (का सबब) है तो गिरानी की वजह से गोया वह लोग बड़ी दूर की जगह से पुकारे जाते है
وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ فَاخْتُلِفَ فِيهِ ۗ وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِنْ رَبِّكَ لَقُضِيَ بَيْنَهُمْ ۚ وَإِنَّهُمْ لَفِي شَكٍّ مِنْهُ مُرِيبٍ
(और नहीं सुनते) और हम ही ने मूसा को भी किताब (तौरैत) अता की थी तो उसमें भी इसमें एख्तेलाफ किया गया और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से एक बात पहले न हो चुकी होती तो उनमें कब का फैसला कर दिया गया होता, और ये लोग ऐसे शक़ में पड़े हुए हैं जिसने उन्हें बेचैन कर दिया है

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