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Surah Al-Baqara Ayahs #218 Translated in Hindi

أَمْ حَسِبْتُمْ أَنْ تَدْخُلُوا الْجَنَّةَ وَلَمَّا يَأْتِكُمْ مَثَلُ الَّذِينَ خَلَوْا مِنْ قَبْلِكُمْ ۖ مَسَّتْهُمُ الْبَأْسَاءُ وَالضَّرَّاءُ وَزُلْزِلُوا حَتَّىٰ يَقُولَ الرَّسُولُ وَالَّذِينَ آمَنُوا مَعَهُ مَتَىٰ نَصْرُ اللَّهِ ۗ أَلَا إِنَّ نَصْرَ اللَّهِ قَرِيبٌ
क्या तुम ये ख्याल करते हो कि बेहश्त में पहुँच ही जाओगे हालॉकि अभी तक तुम्हे अगले ज़माने वालों की सी हालत नहीं पेश आयी कि उन्हें तरह तरह की तक़लीफों (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी ने घेर लिया था और ज़लज़ले में इस क़दर झिंझोडे ग़ए कि आख़िर (आज़िज़ हो के) पैग़म्बर और ईमान वाले जो उन के साथ थे कहने लगे देखिए ख़ुदा की मदद कब (होती) है देखो (घबराओ नहीं) ख़ुदा की मदद यक़ीनन बहुत क़रीब है
يَسْأَلُونَكَ مَاذَا يُنْفِقُونَ ۖ قُلْ مَا أَنْفَقْتُمْ مِنْ خَيْرٍ فَلِلْوَالِدَيْنِ وَالْأَقْرَبِينَ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينِ وَابْنِ السَّبِيلِ ۗ وَمَا تَفْعَلُوا مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ اللَّهَ بِهِ عَلِيمٌ
(ऐ रसूल) तुमसे लोग पूछते हैं कि हम ख़ुदा की राह में क्या खर्च करें (तो तुम उन्हें) जवाब दो कि तुम अपनी नेक कमाई से जो कुछ खर्च करो तो (वह तुम्हारे माँ बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजो और परदेसियों का हक़ है और तुम कोई नेक सा काम करो ख़ुदा उसको ज़रुर जानता है
كُتِبَ عَلَيْكُمُ الْقِتَالُ وَهُوَ كُرْهٌ لَكُمْ ۖ وَعَسَىٰ أَنْ تَكْرَهُوا شَيْئًا وَهُوَ خَيْرٌ لَكُمْ ۖ وَعَسَىٰ أَنْ تُحِبُّوا شَيْئًا وَهُوَ شَرٌّ لَكُمْ ۗ وَاللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنْتُمْ لَا تَعْلَمُونَ
(मुसलमानों) तुम पर जिहाद फर्ज क़िया गया अगरचे तुम पर शाक़ ज़रुर है और अजब नहीं कि तुम किसी चीज़ (जिहाद) को नापसन्द करो हालॉकि वह तुम्हारे हक़ में बेहतर हो और अजब नहीं कि तुम किसी चीज़ को पसन्द करो हालॉकि वह तुम्हारे हक़ में बुरी हो और ख़ुदा (तो) जानता ही है मगर तुम नही जानते हो
يَسْأَلُونَكَ عَنِ الشَّهْرِ الْحَرَامِ قِتَالٍ فِيهِ ۖ قُلْ قِتَالٌ فِيهِ كَبِيرٌ ۖ وَصَدٌّ عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ وَكُفْرٌ بِهِ وَالْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَإِخْرَاجُ أَهْلِهِ مِنْهُ أَكْبَرُ عِنْدَ اللَّهِ ۚ وَالْفِتْنَةُ أَكْبَرُ مِنَ الْقَتْلِ ۗ وَلَا يَزَالُونَ يُقَاتِلُونَكُمْ حَتَّىٰ يَرُدُّوكُمْ عَنْ دِينِكُمْ إِنِ اسْتَطَاعُوا ۚ وَمَنْ يَرْتَدِدْ مِنْكُمْ عَنْ دِينِهِ فَيَمُتْ وَهُوَ كَافِرٌ فَأُولَٰئِكَ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ ۖ وَأُولَٰئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ ۖ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ
(ऐ रसूल) तुमसे लोग हुरमत वाले महीनों की निस्बत पूछते हैं कि (आया) जिहाद उनमें जायज़ है तो तुम उन्हें जवाब दो कि इन महीनों में जेहाद बड़ा गुनाह है और ये भी याद रहे कि ख़ुदा की राह से रोकना और ख़ुदा से इन्कार और मस्जिदुल हराम (काबा) से रोकना और जो उस के अहल है उनका मस्जिद से निकाल बाहर करना (ये सब) ख़ुदा के नज़दीक इस से भी बढ़कर गुनाह है और फ़ितना परदाज़ी कुश्ती ख़़ून से भी बढ़ कर है और ये कुफ्फ़ार हमेशा तुम से लड़ते ही चले जाएँगें यहाँ तक कि अगर उन का बस चले तो तुम को तुम्हारे दीन से फिरा दे और तुम में जो शख्स अपने दीन से फिरा और कुफ़्र की हालत में मर गया तो ऐसों ही का किया कराया सब कुछ दुनिया और आखेरत (दोनों) में अकारत है और यही लोग जहन्नुमी हैं (और) वह उसी में हमेशा रहेंगें
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَالَّذِينَ هَاجَرُوا وَجَاهَدُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ أُولَٰئِكَ يَرْجُونَ رَحْمَتَ اللَّهِ ۚ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ
बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और ख़ुदा की राह में हिजरत की और जिहाद किया यही लोग रहमते ख़ुदा के उम्मीदवार हैं और ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

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