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Surah Al-Baqara Ayahs #105 Translated in Hindi

وَلَمَّا جَاءَهُمْ رَسُولٌ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ مُصَدِّقٌ لِمَا مَعَهُمْ نَبَذَ فَرِيقٌ مِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ كِتَابَ اللَّهِ وَرَاءَ ظُهُورِهِمْ كَأَنَّهُمْ لَا يَعْلَمُونَ
और जब उनके पास खुदा की तरफ से रसूल (मोहम्मद) आया और उस किताब (तौरेत) की जो उनके पास है तसदीक़ भी करता है तो उन अहले किताब के एक गिरोह ने किताबे खुदा को अपने पसे पुश्त फेंक दिया गोया वह लोग कुछ जानते ही नहीं और उस मंत्र के पीछे पड़ गए
وَاتَّبَعُوا مَا تَتْلُو الشَّيَاطِينُ عَلَىٰ مُلْكِ سُلَيْمَانَ ۖ وَمَا كَفَرَ سُلَيْمَانُ وَلَٰكِنَّ الشَّيَاطِينَ كَفَرُوا يُعَلِّمُونَ النَّاسَ السِّحْرَ وَمَا أُنْزِلَ عَلَى الْمَلَكَيْنِ بِبَابِلَ هَارُوتَ وَمَارُوتَ ۚ وَمَا يُعَلِّمَانِ مِنْ أَحَدٍ حَتَّىٰ يَقُولَا إِنَّمَا نَحْنُ فِتْنَةٌ فَلَا تَكْفُرْ ۖ فَيَتَعَلَّمُونَ مِنْهُمَا مَا يُفَرِّقُونَ بِهِ بَيْنَ الْمَرْءِ وَزَوْجِهِ ۚ وَمَا هُمْ بِضَارِّينَ بِهِ مِنْ أَحَدٍ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ ۚ وَيَتَعَلَّمُونَ مَا يَضُرُّهُمْ وَلَا يَنْفَعُهُمْ ۚ وَلَقَدْ عَلِمُوا لَمَنِ اشْتَرَاهُ مَا لَهُ فِي الْآخِرَةِ مِنْ خَلَاقٍ ۚ وَلَبِئْسَ مَا شَرَوْا بِهِ أَنْفُسَهُمْ ۚ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ
जिसको सुलेमान के ज़माने की सलतनत में शयातीन जपा करते थे हालाँकि सुलेमान ने कुफ्र नहीं इख़तेयार किया लेकिन शैतानों ने कुफ्र एख़तेयार किया कि वह लोगों को जादू सिखाया करते थे और वह चीज़ें जो हारूत और मारूत दोनों फ़रिश्तों पर बाइबिल में नाज़िल की गई थी हालाँकि ये दोनों फ़रिश्ते किसी को सिखाते न थे जब तक ये न कह देते थे कि हम दोनों तो फ़क़त (ज़रियाए आज़माइश) है पस तो (इस पर अमल करके) बेईमान न हो जाना उस पर भी उनसे वह (टोटके) सीखते थे जिनकी वजह से मिया बीवी में तफ़रक़ा डालते हालाँकि बग़ैर इज्ने खुदावन्दी वह अपनी इन बातों से किसी को ज़रर नहीं पहुँचा सकते थे और ये लोग ऐसी बातें सीखते थे जो खुद उन्हें नुक़सान पहुँचाती थी और कुछ (नफा) पहुँचाती थी बावजूद कि वह यक़ीनन जान चुके थे कि जो शख्स इन (बुराईयों) का ख़रीदार हुआ वह आख़िरत में बेनसीब हैं और बेशुबह (मुआवज़ा) बहुत ही बड़ा है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों को बेचा काश (उसे कुछ) सोचे समझे होते
وَلَوْ أَنَّهُمْ آمَنُوا وَاتَّقَوْا لَمَثُوبَةٌ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ خَيْرٌ ۖ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ
और अगर वह ईमान लाते और जादू वग़ैरह से बचकर परहेज़गार बनते तो खुदा की दरगाह से जो सवाब मिलता वह उससे कहीं बेहतर होता काश ये लोग (इतना तो) समझते
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَقُولُوا رَاعِنَا وَقُولُوا انْظُرْنَا وَاسْمَعُوا ۗ وَلِلْكَافِرِينَ عَذَابٌ أَلِيمٌ
ऐ ईमानवालों तुम (रसूल को अपनी तरफ मुतावज्जे करना चाहो तो) रआना (हमारी रिआयत कर) न कहा करो बल्कि उनज़ुरना (हम पर नज़रे तवज्जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सुनते रहो और काफिरों के लिए दर्दनाक अज़ाब है
مَا يَوَدُّ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَلَا الْمُشْرِكِينَ أَنْ يُنَزَّلَ عَلَيْكُمْ مِنْ خَيْرٍ مِنْ رَبِّكُمْ ۗ وَاللَّهُ يَخْتَصُّ بِرَحْمَتِهِ مَنْ يَشَاءُ ۚ وَاللَّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ
ऐ रसूल अहले किताब में से जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया वह और मुशरेकीन ये नहीं चाहते हैं कि तुम पर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से भलाई (वही) नाज़िल की जाए और (उनका तो इसमें कुछ इजारा नहीं) खुदा जिसको चाहता है अपनी रहमत के लिए ख़ास कर लेता है और खुदा बड़ा फज़ल (करने) वाला है

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