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Surah An-Nur Ayahs #60 Translated in Hindi

وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ
और (ऐ ईमानदारों) नमाज़ पाबन्दी से पढ़ा करो और ज़कात दिया करो और (दिल से) रसूल की इताअत करो ताकि तुम पर रहम किया जाए
لَا تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا مُعْجِزِينَ فِي الْأَرْضِ ۚ وَمَأْوَاهُمُ النَّارُ ۖ وَلَبِئْسَ الْمَصِيرُ
और (ऐ रसूल) तुम ये ख्याल न करो कि कुफ्फार (इधर उधर) ज़मीन मे (फैल कर हमें) आजिज़ कर देगें (ये ख़ुद आजिज़ हो जाएगें) और उनका ठिकाना तो जहन्नुम है और क्या बुरा ठिकाना है
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لِيَسْتَأْذِنْكُمُ الَّذِينَ مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ وَالَّذِينَ لَمْ يَبْلُغُوا الْحُلُمَ مِنْكُمْ ثَلَاثَ مَرَّاتٍ ۚ مِنْ قَبْلِ صَلَاةِ الْفَجْرِ وَحِينَ تَضَعُونَ ثِيَابَكُمْ مِنَ الظَّهِيرَةِ وَمِنْ بَعْدِ صَلَاةِ الْعِشَاءِ ۚ ثَلَاثُ عَوْرَاتٍ لَكُمْ ۚ لَيْسَ عَلَيْكُمْ وَلَا عَلَيْهِمْ جُنَاحٌ بَعْدَهُنَّ ۚ طَوَّافُونَ عَلَيْكُمْ بَعْضُكُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
ऐ ईमानदारों तुम्हारी लौन्डी ग़ुलाम और वह लड़के जो अभी तक बुलूग़ की हद तक नहीं पहुँचे हैं उनको भी चाहिए कि (दिन रात में) तीन मरतबा (तुम्हारे पास आने की) तुमसे इजाज़त ले लिया करें तब आएँ (एक) नमाज़ सुबह से पहले और (दूसरे) जब तुम (गर्मी से) दोपहर को (सोने के लिए मामूलन) कपड़े उतार दिया करते हो (तीसरी) नमाजे इशा के बाद (ये) तीन (वक्त) तुम्हारे परदे के हैं इन अवक़ात के अलावा (बे अज़न आने मे) न तुम पर कोई इल्ज़ाम है-न उन पर (क्योंकि) उन अवक़ात के अलावा (ब ज़रुरत या बे ज़रुरत) लोग एक दूसरे के पास चक्कर लगाया करते हैं- यँ ख़ुदा (अपने) एहकाम तुम से साफ साफ बयान करता है और ख़ुदा तो बड़ा वाकिफ़कार हकीम है
وَإِذَا بَلَغَ الْأَطْفَالُ مِنْكُمُ الْحُلُمَ فَلْيَسْتَأْذِنُوا كَمَا اسْتَأْذَنَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
और (ऐ ईमानदारों) जब तुम्हारे लड़के हदे बुलूग को पहुँचें तो जिस तरह उन के कब्ल (बड़ी उम्र) वाले (घर में आने की) इजाज़त ले लिया करते थे उसी तरह ये लोग भी इजाज़त ले लिया करें-यूँ ख़ुदा अपने एहकाम साफ साफ बयान करता है और ख़ुदा तो बड़ा वाकिफकार हकीम है
وَالْقَوَاعِدُ مِنَ النِّسَاءِ اللَّاتِي لَا يَرْجُونَ نِكَاحًا فَلَيْسَ عَلَيْهِنَّ جُنَاحٌ أَنْ يَضَعْنَ ثِيَابَهُنَّ غَيْرَ مُتَبَرِّجَاتٍ بِزِينَةٍ ۖ وَأَنْ يَسْتَعْفِفْنَ خَيْرٌ لَهُنَّ ۗ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
और बूढ़ी बूढ़ी औरतें जो (बुढ़ापे की वजह से) निकाह की ख्वाहिश नही रखती वह अगर अपने कपड़े (दुपट्टे वगैराह) उतारकर (सर नंगा) कर डालें तो उसमें उन पर कुछ गुनाह नही है- बशर्ते कि उनको अपना बनाव सिंगार दिखाना मंज़ूर न हो और (इस से भी) बचें तो उनके लिए और बेहतर है और ख़ुदा तो (सबकी सब कुछ) सुनता और जानता है

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