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Surah An-Nisa Ayahs #118 Translated in Hindi

لَا خَيْرَ فِي كَثِيرٍ مِنْ نَجْوَاهُمْ إِلَّا مَنْ أَمَرَ بِصَدَقَةٍ أَوْ مَعْرُوفٍ أَوْ إِصْلَاحٍ بَيْنَ النَّاسِ ۚ وَمَنْ يَفْعَلْ ذَٰلِكَ ابْتِغَاءَ مَرْضَاتِ اللَّهِ فَسَوْفَ نُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا
(ऐ रसूल) उनके राज़ की बातों में अक्सर में भलाई (का तो नाम तक) नहीं मगर (हॉ) जो शख्स किसी को सदक़ा देने या अच्छे काम करे या लोगों के दरमियान मेल मिलाप कराने का हुक्म दे (तो अलबत्ता एक बात है) और जो शख्स (महज़) ख़ुदा की ख़ुशनूदी की ख्वाहिश में ऐसे काम करेगा तो हम अनक़रीब ही उसे बड़ा अच्छा बदला अता फरमाएंगे
وَمَنْ يُشَاقِقِ الرَّسُولَ مِنْ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُ الْهُدَىٰ وَيَتَّبِعْ غَيْرَ سَبِيلِ الْمُؤْمِنِينَ نُوَلِّهِ مَا تَوَلَّىٰ وَنُصْلِهِ جَهَنَّمَ ۖ وَسَاءَتْ مَصِيرًا
और जो शख्स राहे रास्त के ज़ाहिर होने के बाद रसूल से सरकशी करे और मोमिनीन के तरीक़े के सिवा किसी और राह पर चले तो जिधर वह फिर गया है हम भी उधर ही फेर देंगे और (आख़िर) उसे जहन्नुम में झोंक देंगे और वह तो बहुत ही बुरा ठिकाना
إِنَّ اللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَنْ يُشْرَكَ بِهِ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَنْ يَشَاءُ ۚ وَمَنْ يُشْرِكْ بِاللَّهِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا بَعِيدًا
ख़ुदा बेशक उसको तो नहीं बख्शता कि उसका कोई और शरीक बनाया जाए हॉ उसके सिवा जो गुनाह हो जिसको चाहे बख्श दे और (माज़ अल्लाह) जिसने किसी को ख़ुदा का शरीक बनाया तो वह बस भटक के बहुत दूर जा पड़ा
إِنْ يَدْعُونَ مِنْ دُونِهِ إِلَّا إِنَاثًا وَإِنْ يَدْعُونَ إِلَّا شَيْطَانًا مَرِيدًا
मुशरेकीन ख़ुदा को छोड़कर बस औरतों ही की परसतिश करते हैं (यानी बुतों की जो उनके) ख्याल में औरतें हैं (दर हक़ीक़त) ये लोग सरकश शैतान की परसतिश करते हैं
لَعَنَهُ اللَّهُ ۘ وَقَالَ لَأَتَّخِذَنَّ مِنْ عِبَادِكَ نَصِيبًا مَفْرُوضًا
जिसपर ख़ुदा ने लानत की है और जिसने (इब्तिदा ही में) कहा था कि (ख़ुदावन्दा) मैं तेरे बन्दों में से कुछ ख़ास लोगों को (अपनी तरफ) ज़रूर ले लूंगा

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