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Surah Al-Araf Ayahs #104 Translated in Hindi

أَوَلَمْ يَهْدِ لِلَّذِينَ يَرِثُونَ الْأَرْضَ مِنْ بَعْدِ أَهْلِهَا أَنْ لَوْ نَشَاءُ أَصَبْنَاهُمْ بِذُنُوبِهِمْ ۚ وَنَطْبَعُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ فَهُمْ لَا يَسْمَعُونَ
क्या जो लोग अहले ज़मीन के बाद ज़मीन के वारिस (व मालिक) होते हैं उन्हें ये मालूम नहीं कि अगर हम चाहते तो उनके गुनाहों की बदौलत उनको मुसीबत में फँसा देते (मगर ये लोग ऐसे नासमझ हैं कि गोया) उनके दिलों पर हम ख़ुद (मोहर कर देते हैं कि ये लोग कुछ सुनते ही नहीं
تِلْكَ الْقُرَىٰ نَقُصُّ عَلَيْكَ مِنْ أَنْبَائِهَا ۚ وَلَقَدْ جَاءَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنَاتِ فَمَا كَانُوا لِيُؤْمِنُوا بِمَا كَذَّبُوا مِنْ قَبْلُ ۚ كَذَٰلِكَ يَطْبَعُ اللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِ الْكَافِرِينَ
(ऐ रसूल) ये चन्द बस्तियाँ हैं जिन के हालात हम तुमसे बयान करते हैं और इसमें तो शक़ ही नहीं कि उनके पैग़म्बर उनके पास वाजेए व रौशन मौजिज़े लेकर आए मगर ये लोग जिसके पहले झुठला चुके थे उस पर भला काहे को ईमान लाने वाले थे ख़ुदा यूं काफिरों के दिलों पर अलामत मुकर्रर कर देता है (कि ये ईमान न लाएँगें)
وَمَا وَجَدْنَا لِأَكْثَرِهِمْ مِنْ عَهْدٍ ۖ وَإِنْ وَجَدْنَا أَكْثَرَهُمْ لَفَاسِقِينَ
और हमने तो उसमें से अक्सरों का एहद (ठीक) न पाया और हमने उनमें से अक्सरों को बदकार ही पाया
ثُمَّ بَعَثْنَا مِنْ بَعْدِهِمْ مُوسَىٰ بِآيَاتِنَا إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَمَلَئِهِ فَظَلَمُوا بِهَا ۖ فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُفْسِدِينَ
फिर हमने (उन पैग़म्बरान मज़कूरीन के बाद) मूसा को फिरऔन और उसके सरदारों के पास मौजिज़े अता करके (रसूल बनाकर) भेजा तो उन लोगों ने उन मौजिज़ात के साथ (बड़ी बड़ी) शरारतें की पस ज़रा ग़ौर तो करो कि आख़िर फसादियों का अन्जाम क्या हुआ
وَقَالَ مُوسَىٰ يَا فِرْعَوْنُ إِنِّي رَسُولٌ مِنْ رَبِّ الْعَالَمِينَ
और मूसा ने (फिरऔन से) कहा ऐ फिरऔनमें यक़ीनन परवरदिगारे आलम का रसूल हूँ

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