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Surah Al-Anaam Ayahs #151 Translated in Hindi

فَإِنْ كَذَّبُوكَ فَقُلْ رَبُّكُمْ ذُو رَحْمَةٍ وَاسِعَةٍ وَلَا يُرَدُّ بَأْسُهُ عَنِ الْقَوْمِ الْمُجْرِمِينَ
(ऐ रसूल) पर अगर वह तुम्हें झुठलाएं तो तुम (जवाब) में कहो कि (अगरचे) तुम्हारा परवरदिगार बड़ी वसीह रहमत वाला है मगर उसका अज़ाब गुनाहगार लोगों से टलता भी नहीं
سَيَقُولُ الَّذِينَ أَشْرَكُوا لَوْ شَاءَ اللَّهُ مَا أَشْرَكْنَا وَلَا آبَاؤُنَا وَلَا حَرَّمْنَا مِنْ شَيْءٍ ۚ كَذَٰلِكَ كَذَّبَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ حَتَّىٰ ذَاقُوا بَأْسَنَا ۗ قُلْ هَلْ عِنْدَكُمْ مِنْ عِلْمٍ فَتُخْرِجُوهُ لَنَا ۖ إِنْ تَتَّبِعُونَ إِلَّا الظَّنَّ وَإِنْ أَنْتُمْ إِلَّا تَخْرُصُونَ
अनक़रीब मुशरेकीन कहेंगें कि अगर ख़ुदा चाहता तो न हम लोग शिर्क करते और न हमारे बाप दादा और न हम कोई चीज़ अपने ऊपर हराम करते उसी तरह (बातें बना बना के) जो लोग उनसे पहले हो गुज़रे हैं (पैग़म्बरों को) झुठलाते रहे यहाँ तक कि उन लोगों ने हमारे अज़ाब (के मज़े)े को चख़ा (ऐ रसूल) तुम कहो कि तुम्हारे पास कोई दलील है (अगर है) तो हमारे (दिखाने के) वास्ते उसको निकालो (दलील तो क्या) पेश करोगे तुम लोग तो सिर्फ अपने ख्याल ख़ाम की पैरवी करते हो और सिर्फ अटकल पच्चू बातें करते हो
قُلْ فَلِلَّهِ الْحُجَّةُ الْبَالِغَةُ ۖ فَلَوْ شَاءَ لَهَدَاكُمْ أَجْمَعِينَ
(ऐ रसूल) तुम कहो कि (अब तुम्हारे पास कोई दलील नहीं है) ख़ुदा तक पहुंचाने वाली दलील ख़ुदा ही के लिए ख़ास है
قُلْ هَلُمَّ شُهَدَاءَكُمُ الَّذِينَ يَشْهَدُونَ أَنَّ اللَّهَ حَرَّمَ هَٰذَا ۖ فَإِنْ شَهِدُوا فَلَا تَشْهَدْ مَعَهُمْ ۚ وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَاءَ الَّذِينَ كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا وَالَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ وَهُمْ بِرَبِّهِمْ يَعْدِلُونَ
फिर अगर वही चाहता तो तुम सबकी हिदायत करता (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ( अच्छा) अपने गवाहों को लाकर हाज़िर करो जो ये गवाही दें कि ये चीज़े (जिन्हें तुम हराम मानते हो) खुदा ही ने हराम कर दी हैं फिर अगर (बिलग़रज़) वह गवाही दे भी दे तो (ऐ रसूल) कहीं तुम उनके साथ गवाही न देना और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया और आख़िरत पर ईमान नहीं लाते और दूसरों को अपने परवरदिगार का हम सर बनाते है उनकी नफ़सियानी ख्वाहिशों पर न चलना
قُلْ تَعَالَوْا أَتْلُ مَا حَرَّمَ رَبُّكُمْ عَلَيْكُمْ ۖ أَلَّا تُشْرِكُوا بِهِ شَيْئًا ۖ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا ۖ وَلَا تَقْتُلُوا أَوْلَادَكُمْ مِنْ إِمْلَاقٍ ۖ نَحْنُ نَرْزُقُكُمْ وَإِيَّاهُمْ ۖ وَلَا تَقْرَبُوا الْفَوَاحِشَ مَا ظَهَرَ مِنْهَا وَمَا بَطَنَ ۖ وَلَا تَقْتُلُوا النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللَّهُ إِلَّا بِالْحَقِّ ۚ ذَٰلِكُمْ وَصَّاكُمْ بِهِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ
(ऐ रसूल) तुम उनसे कहो कि (बेबस) आओ जो चीज़ें ख़ुदा ने तुम पर हराम की हैं वह मैं तुम्हें पढ़ कर सुनाऊँ (वह) यह कि किसी चीज़ को ख़ुदा का शरीक़ न बनाओ और माँ बाप के साथ नेक सुलूक़ करो और मुफ़लिसी के ख़ौफ से अपनी औलाद को मार न डालना (क्योंकि) उनको और तुमको रिज़क देने वाले तो हम हैं और बदकारियों के क़रीब भी न जाओ ख्वाह (चाहे) वह ज़ाहिर हो या पोशीदा और किसी जान वाले को जिस के क़त्ल को ख़ुदा ने हराम किया है न मार डालना मगर (किसी) हक़ के ऐवज़ में वह बातें हैं जिनका ख़ुदा ने तुम्हें हुक्म दिया है ताकि तुम लोग समझो और यतीम के माल के करीब भी न जाओ

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