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Surah Yunus Ayahs #16 Translated in Hindi

وَإِذَا مَسَّ الْإِنْسَانَ الضُّرُّ دَعَانَا لِجَنْبِهِ أَوْ قَاعِدًا أَوْ قَائِمًا فَلَمَّا كَشَفْنَا عَنْهُ ضُرَّهُ مَرَّ كَأَنْ لَمْ يَدْعُنَا إِلَىٰ ضُرٍّ مَسَّهُ ۚ كَذَٰلِكَ زُيِّنَ لِلْمُسْرِفِينَ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ
और इन्सान को जब कोई नुकसान छू भी गया तो अपने पहलू पर (लेटा हो) या बैठा हो या ख़ड़ा (गरज़ हर हालत में) हम को पुकारता है फिर जब हम उससे उसकी तकलीफ को दूर कर देते है तो ऐसा खिसक जाता है जैसे उसने तकलीफ के (दफा करने के) लिए जो उसको पहुँचती थी हमको पुकारा ही न था जो लोग ज्यादती करते हैं उनकी कारस्तानियाँ यूँ ही उन्हें अच्छी कर दिखाई गई हैं
وَلَقَدْ أَهْلَكْنَا الْقُرُونَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَمَّا ظَلَمُوا ۙ وَجَاءَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنَاتِ وَمَا كَانُوا لِيُؤْمِنُوا ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْقَوْمَ الْمُجْرِمِينَ
और तुमसे पहली उम्मत वालों को जब उन्होंने शरारत की तो हम ने उन्हें ज़रुर हलाक कर डाला हालॉकि उनके (वक्त क़े) रसूल वाजेए व रौशन मोज़िज़ात लेकर आ चुके थे और वह लोग ईमान (न लाना था) न लाए हम गुनेहगार लोगों की यूँ ही सज़ा किया करते हैं
ثُمَّ جَعَلْنَاكُمْ خَلَائِفَ فِي الْأَرْضِ مِنْ بَعْدِهِمْ لِنَنْظُرَ كَيْفَ تَعْمَلُونَ
फिर हमने उनके बाद तुमको ज़मीन में (उनका) जानशीन बनाया ताकि हम (भी) देखें कि तुम किस तरह काम करते हो
وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ آيَاتُنَا بَيِّنَاتٍ ۙ قَالَ الَّذِينَ لَا يَرْجُونَ لِقَاءَنَا ائْتِ بِقُرْآنٍ غَيْرِ هَٰذَا أَوْ بَدِّلْهُ ۚ قُلْ مَا يَكُونُ لِي أَنْ أُبَدِّلَهُ مِنْ تِلْقَاءِ نَفْسِي ۖ إِنْ أَتَّبِعُ إِلَّا مَا يُوحَىٰ إِلَيَّ ۖ إِنِّي أَخَافُ إِنْ عَصَيْتُ رَبِّي عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ
और जब उन लोगों के सामने हमारी रौशन आयते पढ़ीं जाती हैं तो जिन लोगों को (मरने के बाद) हमारी हुजूरी का खटका नहीं है वह कहते है कि हमारे सामने इसके अलावा कोई दूसरा (कुरान लाओ या उसका रद्दो बदल कर डालो (ऐ रसूल तुम कह दो कि मुझे ये एख्तेयार नहीं कि मै उसे अपने जी से बदल डालूँ मै तो बस उसी का पाबन्द हूँ जो मेरी तरफ वही की गई है मै तो अगर अपने परवरदिगार की नाफरमानी करु तो बड़े (कठिन) दिन के अज़ाब से डरता हूँ
قُلْ لَوْ شَاءَ اللَّهُ مَا تَلَوْتُهُ عَلَيْكُمْ وَلَا أَدْرَاكُمْ بِهِ ۖ فَقَدْ لَبِثْتُ فِيكُمْ عُمُرًا مِنْ قَبْلِهِ ۚ أَفَلَا تَعْقِلُونَ
(ऐ रसूल) कह दो कि ख़ुदा चाहता तो मै न तुम्हारे सामने इसको पढ़ता और न वह तुम्हें इससे आगाह करता क्योंकि मै तो (आख़िर) तुमने इससे पहले मुद्दतों रह चुका हूँ (और कभी 'वही' का नाम भी न लिया)

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