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Surah Hud Ayahs #17 Translated in Hindi

أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ ۖ قُلْ فَأْتُوا بِعَشْرِ سُوَرٍ مِثْلِهِ مُفْتَرَيَاتٍ وَادْعُوا مَنِ اسْتَطَعْتُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ
तुम्हें उनका ख्याल न करना चाहिए और ख़ुदा हर चीज़ का ज़िम्मेदार है क्या ये लोग कहते हैं कि उस शख़्श (तुम) ने इस (क़ुरान) को अपनी तरफ से गढ़ लिया है तो तुम (उनसे साफ साफ) कह दो कि अगर तुम (अपने दावे में) सच्चे हो तो (ज्यादा नहीं) ऐसे दस सूरे अपनी तरफ से गढ़ के ले आओं
فَإِلَّمْ يَسْتَجِيبُوا لَكُمْ فَاعْلَمُوا أَنَّمَا أُنْزِلَ بِعِلْمِ اللَّهِ وَأَنْ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ فَهَلْ أَنْتُمْ مُسْلِمُونَ
और ख़ुदा के सिवा जिस जिस के तुम्हे बुलाते बन पड़े मदद के वास्ते बुला लो उस पर अगर वह तुम्हारी न सुने तो समझ ले कि (ये क़ुरान) सिर्फ ख़ुदा के इल्म से नाज़िल किया गया है और ये कि ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं तो क्या तुम अब भी इस्लाम लाओगे (या नहीं)
مَنْ كَانَ يُرِيدُ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا وَزِينَتَهَا نُوَفِّ إِلَيْهِمْ أَعْمَالَهُمْ فِيهَا وَهُمْ فِيهَا لَا يُبْخَسُونَ
नेकी करने वालों में से जो शख़्श दुनिया की ज़िन्दगी और उसके रिज़क़ का तालिब हो तो हम उन्हें उनकी कारगुज़ारियों का बदला दुनिया ही में पूरा पूरा भर देते हैं और ये लोग दुनिया में घाटे में नहीं रहेगें
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ لَيْسَ لَهُمْ فِي الْآخِرَةِ إِلَّا النَّارُ ۖ وَحَبِطَ مَا صَنَعُوا فِيهَا وَبَاطِلٌ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ
मगर (हाँ) ये वह लोग हैं जिनके लिए आख़िरत में (जहन्नुम की) आग के सिवा कुछ नहीं और जो कुछ दुनिया में उन लोगों ने किया धरा था सब अकारत (बर्बाद) हो गया और जो कुछ ये लोग करते थे सब मिटियामेट हो गया
أَفَمَنْ كَانَ عَلَىٰ بَيِّنَةٍ مِنْ رَبِّهِ وَيَتْلُوهُ شَاهِدٌ مِنْهُ وَمِنْ قَبْلِهِ كِتَابُ مُوسَىٰ إِمَامًا وَرَحْمَةً ۚ أُولَٰئِكَ يُؤْمِنُونَ بِهِ ۚ وَمَنْ يَكْفُرْ بِهِ مِنَ الْأَحْزَابِ فَالنَّارُ مَوْعِدُهُ ۚ فَلَا تَكُ فِي مِرْيَةٍ مِنْهُ ۚ إِنَّهُ الْحَقُّ مِنْ رَبِّكَ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يُؤْمِنُونَ
तो क्या जो शख़्श अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हो और उसके पीछे ही पीछे उनका एक गवाह हो और उसके क़बल मूसा की किताब (तौरैत) जो (लोगों के लिए) पेशवा और रहमत थी (उसकी तसदीक़ करती हो वह बेहतर है या कोई दूसरा) यही लोग सच्चे ईमान लाने वाले और तमाम फिरक़ों में से जो शख़्श भी उसका इन्कार करे तो उसका ठिकाना बस आतिश (जहन्नुम) है तो फिर तुम कहीं उसकी तरफ से शक़ में न पड़े रहना, बेशक ये क़ुरान तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से बरहक़ है मगर बहुतेरे लोग ईमान नही लाते

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