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Surah An-Nisa Ayahs #81 Translated in Hindi

أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ قِيلَ لَهُمْ كُفُّوا أَيْدِيَكُمْ وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ فَلَمَّا كُتِبَ عَلَيْهِمُ الْقِتَالُ إِذَا فَرِيقٌ مِنْهُمْ يَخْشَوْنَ النَّاسَ كَخَشْيَةِ اللَّهِ أَوْ أَشَدَّ خَشْيَةً ۚ وَقَالُوا رَبَّنَا لِمَ كَتَبْتَ عَلَيْنَا الْقِتَالَ لَوْلَا أَخَّرْتَنَا إِلَىٰ أَجَلٍ قَرِيبٍ ۗ قُلْ مَتَاعُ الدُّنْيَا قَلِيلٌ وَالْآخِرَةُ خَيْرٌ لِمَنِ اتَّقَىٰ وَلَا تُظْلَمُونَ فَتِيلًا
(ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों (के हाल) पर नज़र नहीं की जिनको (जेहाद की आरज़ू थी) और उनको हुक्म दिया गया था कि (अभी) अपने हाथ रोके रहो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो और ज़कात दिए जाओ मगर जब जिहाद (उनपर वाजिब किया गया तो) उनमें से कुछ लोग (बोदेपन में) लोगों से इस तरह डरने लगे जैसे कोई ख़ुदा से डरे बल्कि उससे कहीं ज्यादा और (घबराकर) कहने लगे ख़ुदाया तूने हमपर जेहाद क्यों वाजिब कर दिया हमको कुछ दिनों की और मोहलत क्यों न दी (ऐ रसूल) उनसे कह दो कि दुनिया की आसाइश बहुत थोड़ा सा है और जो (ख़ुदा से) डरता है उसकी आख़ेरत उससे कहीं बेहतर है
أَيْنَمَا تَكُونُوا يُدْرِكْكُمُ الْمَوْتُ وَلَوْ كُنْتُمْ فِي بُرُوجٍ مُشَيَّدَةٍ ۗ وَإِنْ تُصِبْهُمْ حَسَنَةٌ يَقُولُوا هَٰذِهِ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ ۖ وَإِنْ تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ يَقُولُوا هَٰذِهِ مِنْ عِنْدِكَ ۚ قُلْ كُلٌّ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ ۖ فَمَالِ هَٰؤُلَاءِ الْقَوْمِ لَا يَكَادُونَ يَفْقَهُونَ حَدِيثًا
और वहां रेशा (बाल) बराबर भी तुम लोगों पर जुल्म नहीं किया जाएगा तुम चाहे जहॉ हो मौत तो तुमको ले डालेगी अगरचे तुम कैसे ही मज़बूत पक्के गुम्बदों में जा छुपो और उनको अगर कोई भलाई पहुंचती है तो कहने लगते हैं कि ये ख़ुदा की तरफ़ से है और अगर उनको कोई तकलीफ़ पहुंचती है तो (शरारत से) कहने लगते हैं कि (ऐ रसूल) ये तुम्हारी बदौलत है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि सब ख़ुदा की तरफ़ से है पस उन लोगों को क्या हो गया है कि र्कोई बात ही नहीं समझते
مَا أَصَابَكَ مِنْ حَسَنَةٍ فَمِنَ اللَّهِ ۖ وَمَا أَصَابَكَ مِنْ سَيِّئَةٍ فَمِنْ نَفْسِكَ ۚ وَأَرْسَلْنَاكَ لِلنَّاسِ رَسُولًا ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ شَهِيدًا
हालॉकि (सच तो यूं है कि) जब तुमको कोई फ़ायदा पहुंचे तो (समझो कि) ख़ुदा की तरफ़ से है और जब तुमको कोई फ़ायदा पहुंचे तो (समझो कि) ख़ुद तुम्हारी बदौलत है और (ऐ रसूल) हमने तुमको लोगों के पास पैग़म्बर बनाकर भेजा है और (इसके लिए) ख़ुदा की गवाही काफ़ी है
مَنْ يُطِعِ الرَّسُولَ فَقَدْ أَطَاعَ اللَّهَ ۖ وَمَنْ تَوَلَّىٰ فَمَا أَرْسَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ حَفِيظًا
जिसने रसूल की इताअत की तो उसने ख़ुदा की इताअत की और जिसने रूगरदानी की तो तुम कुछ ख्याल न करो (क्योंकि) हमने तुम को पासबान (मुक़र्रर) करके तो भेजा नहीं है
وَيَقُولُونَ طَاعَةٌ فَإِذَا بَرَزُوا مِنْ عِنْدِكَ بَيَّتَ طَائِفَةٌ مِنْهُمْ غَيْرَ الَّذِي تَقُولُ ۖ وَاللَّهُ يَكْتُبُ مَا يُبَيِّتُونَ ۖ فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ وَكِيلًا
(ये लोग तुम्हारे सामने) तो कह देते हैं कि हम (आपके) फ़रमाबरदार हैं लेकिन जब तुम्हारे पास से बाहर निकले तो उनमें से कुछ लोग जो कुछ तुमसे कह चुके थे उसके ख़िलाफ़ रातों को मशवरा करते हैं हालॉकि (ये नहीं समझते) ये लोग रातों को जो कुछ भी मशवरा करते हैं उसे ख़ुदा लिखता जाता है पास तुम उन लोगों की कुछ परवाह न करो और ख़ुदा पर भरोसा रखो और ख़ुदा कारसाज़ी के लिए काफ़ी है

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