Surah An-Nisa Ayahs #84 Translated in Hindi
مَنْ يُطِعِ الرَّسُولَ فَقَدْ أَطَاعَ اللَّهَ ۖ وَمَنْ تَوَلَّىٰ فَمَا أَرْسَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ حَفِيظًا
जिसने रसूल की इताअत की तो उसने ख़ुदा की इताअत की और जिसने रूगरदानी की तो तुम कुछ ख्याल न करो (क्योंकि) हमने तुम को पासबान (मुक़र्रर) करके तो भेजा नहीं है
وَيَقُولُونَ طَاعَةٌ فَإِذَا بَرَزُوا مِنْ عِنْدِكَ بَيَّتَ طَائِفَةٌ مِنْهُمْ غَيْرَ الَّذِي تَقُولُ ۖ وَاللَّهُ يَكْتُبُ مَا يُبَيِّتُونَ ۖ فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ وَكِيلًا
(ये लोग तुम्हारे सामने) तो कह देते हैं कि हम (आपके) फ़रमाबरदार हैं लेकिन जब तुम्हारे पास से बाहर निकले तो उनमें से कुछ लोग जो कुछ तुमसे कह चुके थे उसके ख़िलाफ़ रातों को मशवरा करते हैं हालॉकि (ये नहीं समझते) ये लोग रातों को जो कुछ भी मशवरा करते हैं उसे ख़ुदा लिखता जाता है पास तुम उन लोगों की कुछ परवाह न करो और ख़ुदा पर भरोसा रखो और ख़ुदा कारसाज़ी के लिए काफ़ी है
أَفَلَا يَتَدَبَّرُونَ الْقُرْآنَ ۚ وَلَوْ كَانَ مِنْ عِنْدِ غَيْرِ اللَّهِ لَوَجَدُوا فِيهِ اخْتِلَافًا كَثِيرًا
तो क्या ये लोग क़ुरान में भी ग़ौर नहीं करते और (ये नहीं ख्याल करते कि) अगर ख़ुदा के सिवा किसी और की तरफ़ से (आया) होता तो ज़रूर उसमें बड़ा इख्तेलाफ़ पाते
وَإِذَا جَاءَهُمْ أَمْرٌ مِنَ الْأَمْنِ أَوِ الْخَوْفِ أَذَاعُوا بِهِ ۖ وَلَوْ رَدُّوهُ إِلَى الرَّسُولِ وَإِلَىٰ أُولِي الْأَمْرِ مِنْهُمْ لَعَلِمَهُ الَّذِينَ يَسْتَنْبِطُونَهُ مِنْهُمْ ۗ وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ لَاتَّبَعْتُمُ الشَّيْطَانَ إِلَّا قَلِيلًا
और जब उनके (मुसलमानों के) पास अमन या ख़ौफ़ की ख़बर आयी तो उसे फ़ौरन मशहूर कर देते हैं हालॉकि अगर वह उसकी ख़बर को रसूल (या) और ईमानदारो में से जो साहबाने हुकूमत तक पहुंचाते तो बेशक जो लोग उनमें से उसकी तहक़ीक़ करने वाले हैं (पैग़म्बर या वली) उसको समझ लेते कि (मशहूर करने की ज़रूरत है या नहीं) और (मुसलमानों) अगर तुमपर ख़ुदा का फ़ज़ल (व करम) और उसकी मेहरबानी न होती तो चन्द आदमियों के सिवा तुम सबके सब शैतान की पैरवी करने लगते
فَقَاتِلْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ لَا تُكَلَّفُ إِلَّا نَفْسَكَ ۚ وَحَرِّضِ الْمُؤْمِنِينَ ۖ عَسَى اللَّهُ أَنْ يَكُفَّ بَأْسَ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ وَاللَّهُ أَشَدُّ بَأْسًا وَأَشَدُّ تَنْكِيلًا
पस (ऐ रसूल) तुम ख़ुदा की राह में जिहाद करो और तुम अपनी ज़ात के सिवा किसी और के ज़िम्मेदार नहीं हो और ईमानदारों को (जेहाद की) तरग़ीब दो और अनक़रीब ख़ुदा काफ़िरों की हैबत रोक देगा और ख़ुदा की हैबत सबसे ज्यादा है और उसकी सज़ा बहुत सख्त है
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