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Surah An-Nisa Ayahs #19 Translated in Hindi

وَاللَّاتِي يَأْتِينَ الْفَاحِشَةَ مِنْ نِسَائِكُمْ فَاسْتَشْهِدُوا عَلَيْهِنَّ أَرْبَعَةً مِنْكُمْ ۖ فَإِنْ شَهِدُوا فَأَمْسِكُوهُنَّ فِي الْبُيُوتِ حَتَّىٰ يَتَوَفَّاهُنَّ الْمَوْتُ أَوْ يَجْعَلَ اللَّهُ لَهُنَّ سَبِيلًا
और वह उसमें हमेशा अपना किया भुगतता रहेगा और उसके लिए बड़ी रूसवाई का अज़ाब है और तुम्हारी औरतों में से जो औरतें बदकारी करें तो उनकी बदकारी पर अपने लोगों में से चार गवाही लो और फिर अगर चारों गवाह उसकी तसदीक़ करें तो (उसकी सज़ा ये है कि) उनको घरों में बन्द रखो यहॉ तक कि मौत आ जाए या ख़ुदा उनकी कोई (दूसरी) राह निकाले
وَاللَّذَانِ يَأْتِيَانِهَا مِنْكُمْ فَآذُوهُمَا ۖ فَإِنْ تَابَا وَأَصْلَحَا فَأَعْرِضُوا عَنْهُمَا ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ تَوَّابًا رَحِيمًا
और तुम लोगों में से जिनसे बदकारी सरज़द हुई हो उनको मारो पीटो फिर अगर वह दोनों (अपनी हरकत से) तौबा करें और इस्लाह कर लें तो उनको छोड़ दो बेशक ख़ुदा बड़ा तौबा कुबूल करने वाला मेहरबान है
إِنَّمَا التَّوْبَةُ عَلَى اللَّهِ لِلَّذِينَ يَعْمَلُونَ السُّوءَ بِجَهَالَةٍ ثُمَّ يَتُوبُونَ مِنْ قَرِيبٍ فَأُولَٰئِكَ يَتُوبُ اللَّهُ عَلَيْهِمْ ۗ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا
मगर ख़ुदा की बारगाह में तौबा तो सिर्फ उन्हीं लोगों की (ठीक) है जो नादानिस्ता बुरी हरकत कर बैठे (और) फिर जल्दी से तौबा कर ले तो ख़ुदा भी ऐसे लोगों की तौबा क़ुबूल कर लेता है और ख़ुदा तो बड़ा जानने वाला हकीम है
وَلَيْسَتِ التَّوْبَةُ لِلَّذِينَ يَعْمَلُونَ السَّيِّئَاتِ حَتَّىٰ إِذَا حَضَرَ أَحَدَهُمُ الْمَوْتُ قَالَ إِنِّي تُبْتُ الْآنَ وَلَا الَّذِينَ يَمُوتُونَ وَهُمْ كُفَّارٌ ۚ أُولَٰئِكَ أَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا
और तौबा उन लोगों के लिये (मुफ़ीद) नहीं है जो (उम्र भर) तो बुरे काम करते रहे यहॉ तक कि जब उनमें से किसी के सर पर मौत आ खड़ी हुई तो कहने लगे अब मैंने तौबा की और (इसी तरह) उन लोगों के लिए (भी तौबा) मुफ़ीद नहीं है जो कुफ़्र ही की हालत में मर गये ऐसे ही लोगों के वास्ते हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا يَحِلُّ لَكُمْ أَنْ تَرِثُوا النِّسَاءَ كَرْهًا ۖ وَلَا تَعْضُلُوهُنَّ لِتَذْهَبُوا بِبَعْضِ مَا آتَيْتُمُوهُنَّ إِلَّا أَنْ يَأْتِينَ بِفَاحِشَةٍ مُبَيِّنَةٍ ۚ وَعَاشِرُوهُنَّ بِالْمَعْرُوفِ ۚ فَإِنْ كَرِهْتُمُوهُنَّ فَعَسَىٰ أَنْ تَكْرَهُوا شَيْئًا وَيَجْعَلَ اللَّهُ فِيهِ خَيْرًا كَثِيرًا
ऐ ईमानदारों तुमको ये जायज़ नहीं कि (अपने मुरिस की) औरतों से (निकाह कर) के (ख्वाह मा ख्वाह) ज़बरदस्ती वारिस बन जाओ और जो कुछ तुमने उन्हें (शौहर के तर्के से) दिया है उसमें से कुछ (आपस से कुछ वापस लेने की नीयत से) उन्हें दूसरे के साथ (निकाह करने से) न रोको हॉ जब वह खुल्लम खुल्ला कोई बदकारी करें तो अलबत्ता रोकने में (मज़ाएक़ा (हर्ज)नहीं) और बीवियों के साथ अच्छा सुलूक करते रहो और अगर तुम किसी वजह से उन्हें नापसन्द करो (तो भी सब्र करो क्योंकि) अजब नहीं कि किसी चीज़ को तुम नापसन्द करते हो और ख़ुदा तुम्हारे लिए उसमें बहुत बेहतरी कर दे

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