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Surah Al-Maeda Ayahs #97 Translated in Hindi

لَيْسَ عَلَى الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ جُنَاحٌ فِيمَا طَعِمُوا إِذَا مَا اتَّقَوْا وَآمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ ثُمَّ اتَّقَوْا وَآمَنُوا ثُمَّ اتَّقَوْا وَأَحْسَنُوا ۗ وَاللَّهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ
(फिर करो चाहे न करो तुम मुख़तार हो) जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए हैं उन पर जो कुछ खा (पी) चुके उसमें कुछ गुनाह नहीं जब उन्होंने परहेज़गारी की और ईमान ले आए और अच्छे (अच्छे) काम किए फिर परहेज़गारी की और नेकियाँ कीं और ख़ुदा नेकी करने वालों को दोस्त रखता है
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَيَبْلُوَنَّكُمُ اللَّهُ بِشَيْءٍ مِنَ الصَّيْدِ تَنَالُهُ أَيْدِيكُمْ وَرِمَاحُكُمْ لِيَعْلَمَ اللَّهُ مَنْ يَخَافُهُ بِالْغَيْبِ ۚ فَمَنِ اعْتَدَىٰ بَعْدَ ذَٰلِكَ فَلَهُ عَذَابٌ أَلِيمٌ
ऐ ईमानदारों कुछ शिकार से जिन तक तुम्हारे हाथ और नैज़ें पहुँच सकते हैं ख़ुदा ज़रुर इम्तेहान करेगा ताकि ख़ुदा देख ले कि उससे बे देखे भाले कौन डरता है फिर उसके बाद भी जो ज्यादती करेगा तो उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَقْتُلُوا الصَّيْدَ وَأَنْتُمْ حُرُمٌ ۚ وَمَنْ قَتَلَهُ مِنْكُمْ مُتَعَمِّدًا فَجَزَاءٌ مِثْلُ مَا قَتَلَ مِنَ النَّعَمِ يَحْكُمُ بِهِ ذَوَا عَدْلٍ مِنْكُمْ هَدْيًا بَالِغَ الْكَعْبَةِ أَوْ كَفَّارَةٌ طَعَامُ مَسَاكِينَ أَوْ عَدْلُ ذَٰلِكَ صِيَامًا لِيَذُوقَ وَبَالَ أَمْرِهِ ۗ عَفَا اللَّهُ عَمَّا سَلَفَ ۚ وَمَنْ عَادَ فَيَنْتَقِمُ اللَّهُ مِنْهُ ۗ وَاللَّهُ عَزِيزٌ ذُو انْتِقَامٍ
(ऐ ईमानदारों जब तुम हालते एहराम में हो तो शिकार न मारो और तुममें से जो कोई जान बूझ कर शिकार मारेगा तो जिस (जानवर) को मारा है चौपायों में से उसका मसल तुममें से जो दो मुन्सिफ आदमी तजवीज़ कर दें उसका बदला (देना) होगा (और) काबा तक पहुँचा कर कुर्बानी की जाए या (उसका) जुर्माना (उसकी क़ीमत से) मोहताजों को खाना खिलाना या उसके बराबर रोज़े रखना (यह जुर्माना इसलिए है) ताकि अपने किए की सज़ा का मज़ा चखो जो हो चुका उससे तो ख़ुदा ने दरग़ुज़र की और जो फिर ऐसी हरकत करेगा तो ख़ुदा उसकी सज़ा देगा और ख़ुदा ज़बरदस्त बदला लेने वाला है
أُحِلَّ لَكُمْ صَيْدُ الْبَحْرِ وَطَعَامُهُ مَتَاعًا لَكُمْ وَلِلسَّيَّارَةِ ۖ وَحُرِّمَ عَلَيْكُمْ صَيْدُ الْبَرِّ مَا دُمْتُمْ حُرُمًا ۗ وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ
तुम्हारे और काफ़िले के वास्ते दरियाई शिकार और उसका खाना तो (हर हालत में) तुम्हारे वास्ते जायज़ कर दिया है मगर खुश्की का शिकार जब तक तुम हालते एहराम में रहो तुम पर हराम है और उस ख़ुदा से डरते रहो जिसकी तरफ (मरने के बाद) उठाए जाओगे
جَعَلَ اللَّهُ الْكَعْبَةَ الْبَيْتَ الْحَرَامَ قِيَامًا لِلنَّاسِ وَالشَّهْرَ الْحَرَامَ وَالْهَدْيَ وَالْقَلَائِدَ ۚ ذَٰلِكَ لِتَعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَأَنَّ اللَّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
ख़ुदा ने काबा को जो (उसका) मोहतरम घर है और हुरमत दार महीनों को और कुरबानी को और उस जानवर को जिसके गले में (क़ुरबानी के वास्ते) पट्टे डाल दिए गए हों लोगों के अमन क़ायम रखने का सबब क़रार दिया यह इसलिए कि तुम जान लो कि ख़ुदा जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है यक़ीनन (सब) जानता है और ये भी (समझ लो) कि बेशक ख़ुदा हर चीज़ से वाक़िफ है

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