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Surah Al-Araf Ayahs #163 Translated in Hindi

وَمِنْ قَوْمِ مُوسَىٰ أُمَّةٌ يَهْدُونَ بِالْحَقِّ وَبِهِ يَعْدِلُونَ
और मूसा की क़ौम के कुछ लोग ऐसे भी है जो हक़ बात की हिदायत भी करते हैं और हक़ के (मामलात में) इन्साफ़ भी करते हैं
وَقَطَّعْنَاهُمُ اثْنَتَيْ عَشْرَةَ أَسْبَاطًا أُمَمًا ۚ وَأَوْحَيْنَا إِلَىٰ مُوسَىٰ إِذِ اسْتَسْقَاهُ قَوْمُهُ أَنِ اضْرِبْ بِعَصَاكَ الْحَجَرَ ۖ فَانْبَجَسَتْ مِنْهُ اثْنَتَا عَشْرَةَ عَيْنًا ۖ قَدْ عَلِمَ كُلُّ أُنَاسٍ مَشْرَبَهُمْ ۚ وَظَلَّلْنَا عَلَيْهِمُ الْغَمَامَ وَأَنْزَلْنَا عَلَيْهِمُ الْمَنَّ وَالسَّلْوَىٰ ۖ كُلُوا مِنْ طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ ۚ وَمَا ظَلَمُونَا وَلَٰكِنْ كَانُوا أَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ
और हमने बनी ईसराइल के एक एक दादा की औलाद को जुदा जुदा बारह गिरोह बना दिए और जब मूसा की क़ौम ने उनसे पानी मॉगा तो हमने उनके पास वही भेजी कि तुम अपनी छड़ी पत्थर पर मारो (छड़ी मारना था) कि उस पत्थर से पानी के बारह चश्मे फूट निकले और ऐसे साफ साफ अलग अलग कि हर क़बीले ने अपना अपना घाट मालूम कर लिया और हमने बनी ईसराइल पर अब्र (बादल) का साया किया और उन पर मन व सलवा (सी नेअमत) नाज़िल की (लोगों) जो पाक (पाकीज़ा) चीज़े तुम्हें दी हैं उन्हें (शौक़ से खाओ पियो) और उन लोगों ने (नाफरमानी करके) कुछ हमारा नहीं बिगाड़ा बल्कि अपना आप ही बिगाड़ते हैं
وَإِذْ قِيلَ لَهُمُ اسْكُنُوا هَٰذِهِ الْقَرْيَةَ وَكُلُوا مِنْهَا حَيْثُ شِئْتُمْ وَقُولُوا حِطَّةٌ وَادْخُلُوا الْبَابَ سُجَّدًا نَغْفِرْ لَكُمْ خَطِيئَاتِكُمْ ۚ سَنَزِيدُ الْمُحْسِنِينَ
और जब उनसे कहा गया कि उस गाँव में जाकर रहो सहो और उसके मेवों से जहाँ तुम्हारा जी चाहे (शौक़ से) खाओ (पियो) और मुँह से हुतमा कहते और सजदा करते हुए दरवाजे में दाखिल हो तो हम तुम्हारी ख़ताए बख्श देगें और नेकी करने वालों को हम कुछ ज्यादा ही देगें
فَبَدَّلَ الَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْهُمْ قَوْلًا غَيْرَ الَّذِي قِيلَ لَهُمْ فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِجْزًا مِنَ السَّمَاءِ بِمَا كَانُوا يَظْلِمُونَ
तो ज़ालिमों ने जो बात उनसे कही गई थी उसे बदल कर कुछ और कहना शुरू किया तो हमने उनकी शरारतों की बदौलत उन पर आसमान से अज़ाब भेज दिया
وَاسْأَلْهُمْ عَنِ الْقَرْيَةِ الَّتِي كَانَتْ حَاضِرَةَ الْبَحْرِ إِذْ يَعْدُونَ فِي السَّبْتِ إِذْ تَأْتِيهِمْ حِيتَانُهُمْ يَوْمَ سَبْتِهِمْ شُرَّعًا وَيَوْمَ لَا يَسْبِتُونَ ۙ لَا تَأْتِيهِمْ ۚ كَذَٰلِكَ نَبْلُوهُمْ بِمَا كَانُوا يَفْسُقُونَ
और (ऐ रसूल) उनसे ज़रा उस गाँव का हाल तो पूछो जो दरिया के किनारे वाक़ऐ था जब ये लोग उनके बुज़ुर्ग शुम्बे (सनीचर) के दिन ज्यादती करने लगे कि जब उनका शुम्बे (वाला इबादत का) दिन होता तब तो मछलियाँ सिमट कर उनके सामने पानी पर उभर के आ जाती और जब उनका शुम्बा (वाला इबादत का) दिन न होता तो मछलियॉ उनके पास ही न फटकतीं और चॅूकि ये लोग बदचलन थे उस दरजे से हम भी उनकी यूं ही आज़माइश किया करते थे

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