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Surah Aal-E-Imran Ayahs #149 Translated in Hindi

وَمَا كَانَ لِنَفْسٍ أَنْ تَمُوتَ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ كِتَابًا مُؤَجَّلًا ۗ وَمَنْ يُرِدْ ثَوَابَ الدُّنْيَا نُؤْتِهِ مِنْهَا وَمَنْ يُرِدْ ثَوَابَ الْآخِرَةِ نُؤْتِهِ مِنْهَا ۚ وَسَنَجْزِي الشَّاكِرِينَ
और बगैर हुक्मे ख़ुदा के तो कोई शख्स मर ही नहीं सकता वक्ते मुअय्यन तक हर एक की मौत लिखी हुई है और जो शख्स (अपने किए का) बदला दुनिया में चाहे तो हम उसको इसमें से दे देते हैं और जो शख्स आख़ेरत का बदला चाहे उसे उसी में से देंगे और (नेअमत ईमान के) शुक्र करने वालों को बहुत जल्द हम जज़ाए खैर देंगे
وَكَأَيِّنْ مِنْ نَبِيٍّ قَاتَلَ مَعَهُ رِبِّيُّونَ كَثِيرٌ فَمَا وَهَنُوا لِمَا أَصَابَهُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَمَا ضَعُفُوا وَمَا اسْتَكَانُوا ۗ وَاللَّهُ يُحِبُّ الصَّابِرِينَ
और (मुसलमानों तुम ही नहीं) ऐसे पैग़म्बर बहुत से गुज़र चुके हैं जिनके साथ बहुतेरे अल्लाह वालों ने (राहे खुदा में) जेहाद किया और फिर उनको ख़ुदा की राह में जो मुसीबत पड़ी है न तो उन्होंने हिम्मत हारी न बोदापन किया (और न दुशमन के सामने) गिड़गिड़ाने लगे और साबित क़दम रहने वालों से ख़ुदा उलफ़त रखता है
وَمَا كَانَ قَوْلَهُمْ إِلَّا أَنْ قَالُوا رَبَّنَا اغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَإِسْرَافَنَا فِي أَمْرِنَا وَثَبِّتْ أَقْدَامَنَا وَانْصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ
और लुत्फ़ ये है कि उनका क़ौल इसके सिवा कुछ न था कि दुआएं मॉगने लगें कि ऐ हमारे पालने वाले हमारे गुनाह और अपने कामों में हमारी ज्यादतियॉ माफ़ कर और दुश्मनों के मुक़ाबले में हमको साबित क़दम रख और काफ़िरों के गिरोह पर हमको फ़तेह दे
فَآتَاهُمُ اللَّهُ ثَوَابَ الدُّنْيَا وَحُسْنَ ثَوَابِ الْآخِرَةِ ۗ وَاللَّهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ
तो ख़ुदा ने उनको दुनिया में बदला (दिया) और आख़िरत में अच्छा बदला ईनायत फ़रमाया और ख़ुदा नेकी करने वालों को दोस्त रखता (ही) है
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِنْ تُطِيعُوا الَّذِينَ كَفَرُوا يَرُدُّوكُمْ عَلَىٰ أَعْقَابِكُمْ فَتَنْقَلِبُوا خَاسِرِينَ
ऐ ईमानदारों अगर तुम लोगों ने काफ़िरों की पैरवी कर ली तो (याद रखो) वह तुमको उलटे पॉव (कुफ़्र की तरफ़) फेर कर ले जाऐंगे फिर उलटे तुम ही घाटे में आ जाओगे

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