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Surah An-Nisa Ayahs #93 Translated in Hindi

وَدُّوا لَوْ تَكْفُرُونَ كَمَا كَفَرُوا فَتَكُونُونَ سَوَاءً ۖ فَلَا تَتَّخِذُوا مِنْهُمْ أَوْلِيَاءَ حَتَّىٰ يُهَاجِرُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ ۚ فَإِنْ تَوَلَّوْا فَخُذُوهُمْ وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ وَجَدْتُمُوهُمْ ۖ وَلَا تَتَّخِذُوا مِنْهُمْ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا
उन लोगों की ख्वाहिश तो ये है कि जिस तरह वह काफ़िर हो गए तुम भी काफ़िर हो जाओ ताकि तुम उनके बराबर हो जाओ पस जब तक वह ख़ुदा की राह में हिजरत न करें तो उनमें से किसी को दोस्त न बनाओ फिर अगर वह उससे भी मुंह मोड़ें तो उन्हें गिरफ्तार करो और जहॉ पाओ उनको क़त्ल करो और उनमें से किसी को न अपना दोस्त बनाओ न मददगार
إِلَّا الَّذِينَ يَصِلُونَ إِلَىٰ قَوْمٍ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُمْ مِيثَاقٌ أَوْ جَاءُوكُمْ حَصِرَتْ صُدُورُهُمْ أَنْ يُقَاتِلُوكُمْ أَوْ يُقَاتِلُوا قَوْمَهُمْ ۚ وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَسَلَّطَهُمْ عَلَيْكُمْ فَلَقَاتَلُوكُمْ ۚ فَإِنِ اعْتَزَلُوكُمْ فَلَمْ يُقَاتِلُوكُمْ وَأَلْقَوْا إِلَيْكُمُ السَّلَمَ فَمَا جَعَلَ اللَّهُ لَكُمْ عَلَيْهِمْ سَبِيلًا
मगर जो लोग किसी ऐसी क़ौम से जा मिलें कि तुममें और उनमें (सुलह का) एहद व पैमान हो चुका है या तुमसे जंग करने या अपनी क़ौम के साथ लड़ने से दिलतंग होकर तुम्हारे पास आए हों (तो उन्हें आज़ार न पहुंचाओ) और अगर ख़ुदा चाहता तो उनको तुमपर ग़लबा देता तो वह तुमसे ज़रूर लड़ पड़ते पस अगर वह तुमसे किनारा कशी करे और तुमसे न लड़े और तुम्हारे पास सुलाह का पैग़ाम दे तो तुम्हारे लिए उन लोगों पर आज़ार पहुंचाने की ख़ुदा ने कोई सबील नहीं निकाली
سَتَجِدُونَ آخَرِينَ يُرِيدُونَ أَنْ يَأْمَنُوكُمْ وَيَأْمَنُوا قَوْمَهُمْ كُلَّ مَا رُدُّوا إِلَى الْفِتْنَةِ أُرْكِسُوا فِيهَا ۚ فَإِنْ لَمْ يَعْتَزِلُوكُمْ وَيُلْقُوا إِلَيْكُمُ السَّلَمَ وَيَكُفُّوا أَيْدِيَهُمْ فَخُذُوهُمْ وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ ثَقِفْتُمُوهُمْ ۚ وَأُولَٰئِكُمْ جَعَلْنَا لَكُمْ عَلَيْهِمْ سُلْطَانًا مُبِينًا
अनक़रीब तुम कुछ ऐसे और लोगों को भी पाओगे जो चाहते हैं कि तुमसे भी अमन में रहें और अपनी क़ौम से भी अमन में रहें (मगर) जब कभी झगड़े की तरफ़ बुलाए गए तो उसमें औंधे मुंह के बल गिर पड़े पस अगर वह तुमसे न किनारा कशी करें और न तुम्हें सुलह का पैग़ाम दें और न लड़ाई से अपने हाथ रोकें पस उनको पकड़ों और जहॉ पाओ उनको क़त्ल करो और यही वह लोग हैं जिनपर हमने तुम्हें सरीही ग़लबा अता फ़रमाया
وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ أَنْ يَقْتُلَ مُؤْمِنًا إِلَّا خَطَأً ۚ وَمَنْ قَتَلَ مُؤْمِنًا خَطَأً فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُؤْمِنَةٍ وَدِيَةٌ مُسَلَّمَةٌ إِلَىٰ أَهْلِهِ إِلَّا أَنْ يَصَّدَّقُوا ۚ فَإِنْ كَانَ مِنْ قَوْمٍ عَدُوٍّ لَكُمْ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُؤْمِنَةٍ ۖ وَإِنْ كَانَ مِنْ قَوْمٍ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُمْ مِيثَاقٌ فَدِيَةٌ مُسَلَّمَةٌ إِلَىٰ أَهْلِهِ وَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُؤْمِنَةٍ ۖ فَمَنْ لَمْ يَجِدْ فَصِيَامُ شَهْرَيْنِ مُتَتَابِعَيْنِ تَوْبَةً مِنَ اللَّهِ ۗ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا
और किसी ईमानदार को ये जायज़ नहीं कि किसी मोमिन को जान से मार डाले मगर धोखे से (क़त्ल किया हो तो दूसरी बात है) और जो शख्स किसी मोमिन को धोखे से (भी) मार डाले तो (उसपर) एक ईमानदार गुलाम का आज़ाद करना और मक़तूल के क़राबतदारों को खूंन बहा देना (लाज़िम) है मगर जब वह लोग माफ़ करें फिर अगर मक़तूल उन लोगों में से हो वह जो तुम्हारे दुशमन (काफ़िर हरबी) हैं और ख़ुद क़ातिल मोमिन है तो (सिर्फ) एक मुसलमान ग़ुलाम का आज़ाद करना और अगर मक़तूल उन (काफ़िर) लोगों में का हो जिनसे तुम से एहद व पैमान हो चुका है तो (क़ातिल पर) वारिसे मक़तूल को ख़ून बहा देना और एक बन्दए मोमिन का आज़ाद करना (वाजिब) है फ़िर जो शख्स (ग़ुलाम आज़ाद करने को) न पाये तो उसका कुफ्फ़ारा ख़ुदा की तरफ़ से लगातार दो महीने के रोज़े हैं और ख़ुदा ख़ूब वाकिफ़कार (और) हिकमत वाला है
وَمَنْ يَقْتُلْ مُؤْمِنًا مُتَعَمِّدًا فَجَزَاؤُهُ جَهَنَّمُ خَالِدًا فِيهَا وَغَضِبَ اللَّهُ عَلَيْهِ وَلَعَنَهُ وَأَعَدَّ لَهُ عَذَابًا عَظِيمًا
और जो शख्स किसी मोमिन को जानबूझ के मार डाले (ग़ुलाम की आज़ादी वगैरह उसका कुफ्फ़ारा नहीं बल्कि) उसकी सज़ा दोज़क है और वह उसमें हमेशा रहेगा उसपर ख़ुदा ने (अपना) ग़ज़ब ढाया है और उसपर लानत की है और उसके लिए बड़ा सख्त अज़ाब तैयार कर रखा है

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